शनिवार, 12 अगस्त 2017

काफी कुछ नया करना है


काफी कुछ नया करना है

कला जगत स्चयं को समग्र माने तब ही हर पक्ष का मान बढ़ेगा

राजस्थान ललित कला अकादमी के नवनियुक्त अध्यक्ष डॉ. अश्विन एम. दलवी का कहना है कि अकादमी की वर्तमान गतिविधियों को सुचारु रखते हुए काफी कुछ नया करना है।
पद ग्रहण के बाद डॉ. दलवी ने 'मूमल' से हुई एक विशेष भेंट में अपने पद की जिम्मेदारियों के सकारात्मक स्वप्न का कैनवास बुनते हुए अपने विचार रखे। उनका कहना है कि कला जगत स्चयं को समग्र माने तब ही कला के हर पक्ष का मान बढ़ेगा और वो उन्नति की ओर अग्रसर होगा।
अध्यक्ष ने अपनी युवा व एनर्जिक सोच का परिचय देते हुए कहा कि तय कार्यक्रमों से अधिक एडीशनल क्रिएटिव कार्यक्रम हो इस पर जोर दिया जाएगा। कार्यक्रम सुचारु रूप से सम्पन्न हो सके इसके लिए सरकार से प्राप्त बजट के साथ फण्ड उपार्जन की दिशा में कार्य किया जाएगा। उनका मत है कि कार्यक्रमों में सब लोगों की समान रूप से भागीदारी होनी चाहिए। डॉ. दलवी का कहना है कि कन्टेम्पररी आर्ट को सम्मान देते हुए ट्रेडीशनल आर्ट को भी बराबरी की हिस्सेदारी मिल सके इस दिशा में प्रयत्न किया जाएगा। जो कलाएं या शैलियां लुप्त होने के कगार पर हैं या कम हो गई हैं वो प्रमुखता से उबर कर सामने आएं और रिकवर हों, यह मेरी प्रमुखता रहेगी।
संगीत दिखेगा व चित्र गाएंगे
जब डॉ दलवी से संगीत और दृश्य कला के समन्वय के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि मैंने संगीत को विजुअल से जोड़कर कार्यक्रम किए हैं और अकादमी में भी ऐसे कार्यक्रम प्लान किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों में संगीत दिखेगा व चित्र गाएंगे।
सबको साथ लेकर चलने की विचारधारा वाले अकादमी अध्यक्ष जल्दी ही अनुभवी कलाकारों की मीटिंग बुलाकर उनसे सलाह मशवरा कर अकादमी कार्यक्रमों को नई दिशा देंगे।
अमुमन जब भी कोई नया अध्यक्ष पद भार ग्रहण करता है तो हाऊस बनने तक चल रहे कार्यक्रमों पर भी ग्रहण लग जाता है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा डॉ. दलवी का मत है कि समिति गठन का कार्य किसी कार्यक्रम की बाधा नहीं बनेगा, गतिविधियां अपने पूर्व नियोजन के अनुरूप सुचारू रूप से चलती रहेंगी।
अकादमी को लेकर अपने सपनों के प्रति आशान्वित डॉ. दलवी का दावा है कि साल भर के भीतर अकादमी कार्यक्रमों का सकारात्मक लेखा-जोखा वो निश्चित रूप से देंगेे।
डॉ अश्विन महेश दलवी: एक परिचय
सन् 1977 में प्रदेश के जाने-माने तबला वादक स्व. महेश दलवी के घर इनका जन्म हुआ। ऑंख खुलते ही सात सुरों के बीच परवरिश हुई और शिक्षा दीक्षा भी संगीत में ही हुई। पिता की प्रेरणा से सितार इनका प्रिय वाद्य बना और सुर बहार में दक्षता प्राप्त की। संगीत में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद 'पं. निखिल बनर्जी का जीवन परिचय और संगीत जगत को उनकी अनुपम देन' विषय के साथ डाक्टरेट की उपाधि हासिल की। कॅरियर संगीत शिक्षक के रूप में आरम्भ हुआ और देश के ख्यात विश्वविद्यालय वनस्थली विद्यापीठ से लेकर एम.एस. यूनीवर्सिटी बड़ौदा में शिक्षक रूप में कार्य किया। रुझाान संगीत व तमाम कलाओं के रिसर्च के प्रति इतना बढ़ा की बड़ौदा छोड़ अपने गृह नगर जयपुर आकर शोध में सक्रिय हुए और आज भी कई जिज्ञासुओं के मार्गदर्शक व मददगार हैं। संगीत के साथ-साथ इंस्टालेशन में भी इनका योगदान रहा है। डॉ दलवी ने बताया, इस वर्ष के अन्त में जयपुर आर्ट समिट के लिए युवा शिल्पी हंसराज कुमावत के साथ एक इंस्टालेशन तैयार करने की योजना है।

कोई टिप्पणी नहीं: